मैं जानता हुं की यह ख्वाब झुठे है, और यह खुशीयां अधुरी है,
मगर ज़िन्दा रहने के लिए मेरे दोस्त, कुछ गलतफ़हमिया ज़रुरी हैं।
उल्फ़त का आखिर यही दस्तुर होता है, जिसे चाहो वह ही अपने से दुर होता है,
दिल टुट कर भी बिकरता है इस कदर, जैसे खोये कांच का खिलौना चुर-चुर होता है!!
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