वो जो कल था और अपना भी नहीं था दोस्तों....

रहो जमीं पे मगर आसमां का ख्वाब रखो तुम अपनी सोच को हर वक्त लाजवाब रखो,
खड़े न हो सको इतना न सर झुकाओ कभी तुम अपने हाथ में किरदार की किताब रखो,
उभर रहा जो सूरज तो धूप निकलेगी उजालों में रहो मत धुंध का हिसाब रखो,
मिले तो ऐसे कि कोई न भूल पाये तुम्हें महक वंफा की रखोऔर बेहिसाब रखो,
अक्लमंदों में रहो तो अक्लमंदों की तरह और नादानों में रहना हो रहो नादान सा,
वो जो कल था और अपना भी नहीं था दोस्तोंआज को लेकिन सजा लो एक नयी पहचान से !!!

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