बिगड़ा मेरा नसीब तो सब कुछ सनवर गया, कांटो पे मैं गिरा और जमाना गुज़र गया,
तूफ़ान से थक कर मैने पतवार छोद दिया, जब डूब मैं चुका था समुंदर ठहर गया,
टुकड़े तेरे वजूद के फैले थे मेरे पास, उनको समेटने में मेरा वजूद बिखर गया,
मंज़िल को ढुंढता था मुसाफ़िर यह क्या हुआ एक रहगुज़र पे उसका सफ़रब ही बिछड़ गया,
डलने लगी है रात चले जाओ दोस्तो मुझको भी ढ़ुढ़ना है मेरा घर किधर गया।
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